एक समय में हिंदी साहित्य जगत में पाठकों की कमी को लेकर शुरू हुआ था विमर्श


हिंदी कथा परिदृश्य की अगर बात करें तो हम पाते हैं कि पिछले कुछ वर्षो में इसने अपने भूगोल का विस्तार किया है। वामपंथी विचार के प्रभाव में खास तरह की कहानियां या उपन्यास लिखे जा रहे थे। ये दौर बहुत लंबे समय तक चला और एक खास तरह की फॉमरूलाबद्ध कहानियां और उपन्यास लिखे जाते रहे। एक गरीब होगा, उसका संघर्ष होगा, समाज के प्रभावशाली व्यक्ति के गरीबों के शोषण का चित्र होगा, उसमें लंबे लंबे वैचारिक आख्यान होंगे और फिर कई बार सुखांत तो कई बार दुखांत होगा। ये कथा-प्रविधि चलती रही। कुछ लेखक इससे हटकर भी लिखते रहे, लेकिन जोर इसी तरह के लेखन का रहा।


दुनिया को बदलने का स्वप्न देखनेवाले कथा लेखक अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता की वजह से अपनी कहानियों या उपन्यासों को भी दुनिया को बदलने का औजार बनाते चले गए। जब इस तरह के औजार का प्रयोग हुआ तो उसने हिंदी के पाठकों को चौंकाया। लेकिन जब यही प्रविधि ज्यादातर लेखक उपयोग करने लगे तो पाठकों के बीच ऊब सी पैदा हुई।